Jainism History Hindi | जैन धर्म का इतिहास एवं परंपरा हिन्दी
नमस्कार दोस्तों Jainism यानि जैन धर्म के यह पोस्ट में आपका स्वागत है। आजके इस पोस्ट में हम Jainism के इतिहास में महावीर जैन और जैन परंपरा के बारे में जानेंगे। भारत में वैदिक काल के बाद जैन धर्म का विकास हुआ था। जैन धर्म में जैन परंपरा के अनुसार चौबीस तीर्थंकर थे। और, ऋषभा जैन धर्म के सबसे पहले तीर्थंकर थे। और, Jainism में चौबीस वां तीर्थंकर के रूप में महावीर जैन भगवान को जाना जाता है। तथा, विष्णु पुराण और भगवत पुराण में ऋषभा तीर्थंकर को नारायण के अवतार के रूप में वर्णित किया गया है। और, जैन धर्म में दो ऐसे तीर्थंकरों थे, ऋषभा तथा अर्ष्टनमी, जिनके नाम ऋग्वेद में मिलता है।
हिंदी में पड़े – Gautam Buddha History
Mahavira’s Life in Jainism (महावीर के जीवन)
- Jainism में महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व बिहार में वैशाली के पास कुंडग्राम नामक गाँव में हुआ था।
- महावीर के पिता का नाम सिद्धार्थ थे।
- और, वे वैशाली के वज्जी के तहत ज्नाथ्रिका क्षत्रिय वंश के प्रमुख थे।
- तथा, महावीर के माता का नाम त्रिशला थे।
- और, वे वैशाली के राजा चेतक की बहन थी।
Second Phase – महावीर के जीवन का दूसरा चरण
- महावीर जाव प्राप्त आयु के हुवे, तव उनका विवहा यशोदा नामक कन्या से कर दी गई थी।
- और, यशोदा समरवीरा राजा की पुत्री थी।
- वाद में महावीर के एक पुत्री हुई थी।
- जिनका नाम अन्नोजा प्रियदर्शनी थी।
- महावीर के पुत्री का विवहा जमाली नामक व्यक्ति से हुवी थी।
- और, वाद में जमाली (Jamali) महावीर के शिष्य वने थे।
Third Phase – महावीर के जीवन का तीसरा चरण
- महावीर के आयु जव तीस साल हुए, तव उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी।
- उसके वाद महावीर ने आपने परिवार को त्याग कर दिया था।
- क्यों की महावीर की उद्देश्य था, जीवन में तपस्वी बनो और सत्य की खोज में आगे बढ़ो।
- महावीर तीर्थंकर उस समय मक्खलि गोशाला के साथ थे।
- लेकिन बाद में कुछ अंतर के कारण महावीर ने गोशाला को छोड़ दिया था।
- तथा, महावीर ने अजीविका संप्रदाय की स्थापना की थी।
Fourth Phase – जैन धर्म में महावीर के जीवन का चौथा चरण
- और, बयालिस के आयु में महावीर ने रिझुपालिका नदी के तट पर जम्भिकग्राम में एक साल का पेड़ के नीचे, कैवल्य प्राप्त किया था।
- इसे, परम ज्ञान की प्राप्ति भी कहा गया है।
- इसलिए उन्हें केवलिन, जीना या जितेन्द्रिय, नृगरंथा, अरहंत और महावीर कहा जाने लगा।
- इनमे केवलिन का अर्थ सही सीखा (perfect learned) है।
- जीना या जितेन्द्रिय का अर्थ जिसने अपने होश को जीत लिया।
- तथा, नृगरंथा का अर्थ है, सभी बंधनों से मुक्त।
- और, अरहंत का अर्थ धन्य हो गया।
- इसके इलावा महत्वपूर्ण नाम महावीर का अर्थ बहादुर है।
- और, महावीर के अनुयायियों का नाम जैन था।
- महावीर ने पावा में अपना पहला उपदेश दिया था।
- जिसमे उनके अपने ग्यारह शिष्यों शामिल थे।
- अग्निभूति, वायुभूति, अकम्पिता, आर्य व्यकित, सुधर्मन, मंडितपुत्र, मौर्यपुत्र, अकालभ्राता, उल्का और प्रभासा।
- और, इन शिष्यों को ग्यारह गंधरस के नाम से जाना गया है।
Mahavira’s End Life
- महावीर का निधन 468 ईसा पूर्व में बहत्तर वर्ष की आयु में, बिहार के पास पावापुरी में हुवा था।
- और, महावीर के निधन के वाद ग्यारह गंधरस में सुधर्मन (Sudharman) शिष्य ही केवल जीवित थे।
Doctrine of Jainism (जैन धर्म के सिद्धांत)
- Jainism में तीन रत्न है, सम्यक श्रद्धा, सम्यक जनन और सम्यक कर्मा।
- सम्यक श्रद्धा तीर्थंकरों की आस्था है।
- तथा, सम्यक जनन को ज्ञान पंथ का ज्ञान कहा गया है।
- और, सम्यक कर्मा जैन धर्म के पाँच व्रतों का अभ्यास है।
Pancha Mahavaratas – पंच महाव्रत
पंच महाव्रत
- जैन धर्म (Jainism Religion) में पंच महाव्रत यानी पांच व्रत के बारे में कहा गया है।
- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रहा और ब्रह्मचर्य ।
- अहिंसा व्रत में गैर चोट (non-injury) के वारे में कहा गया है।
- सत्य व्रत में झूठ न बोलना है।
- अस्तेय व्रत में गैर चोरी (non-stealing) न करना है।
- और, अपरिग्रहा व्रत में गैर कब्जे (non-possession) न करने के वारे में है।
- तथा, ब्रह्मचर्य व्रत में विशुद्धता के वारे कहा गया है।
- इन चार महाव्रत को पार्श्वनाथ तीर्थंकर द्वारा रखी गई थीं।
- और, पांच-वा महाव्रत को महावीर तीर्थंकर द्वारा रखा गया था।
Five Instruments of Knowledge of Jainism – ज्ञान के पांच साधन
- जैन धर्म में ज्ञान के पांच साधन के वारे में कहा गया है।
- मोती ज्ञान, श्रुति ज्ञान, अवधी ज्ञान और केवल ज्ञान
- मोती ज्ञान में मन सहित इंद्रियों की गतिविधि के माध्यम से धारणा के बारे में है।
- श्रुति ज्ञान में ज्ञान शास्त्रों के वारे में पता चला है।
- तथा, अवधी ज्ञान में भेदक धारणा के वारे में है।
- और, केवल ज्ञान में लौकिक ज्ञान के वारे में कहा गया है।
The Principles of Jainism – जैन धर्म के सिद्धांत
- महावीर द्वारा जैन धर्म (Jainism Religion) के सिद्धांतों को प्रचार के रूप में।
- वेदों और वैदिक अनुष्ठानों के अधिकार को अस्वीकार कर दिया।
- ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं किया।
- तथा, कर्म में विश्वास रखना और आत्मा का संचार।
- और, समानता पर बहुत जोर दिया महावीर ने।
Important Jain Council (महत्वपूर्ण जैन परिषद)
JAIN COUNCIL | VENU | CHAIRMAN | REGIM |
1ST JAIN COUNCIL – 300 BC | PATLIPUTRA | STHULALABHADRA | CHANDRAGUPTA |
2ND JAIN COUNCIL – 512 AD | VALLABHI | DEVARDDHIGANI KSHAMASHRAMANA | _ |
Jain Literature – जैन साहित्य
- जैन साहित्य में श्वेताम्बर का पवित्र साहित्य को प्राकृत (Prakrit) के रूप में लिखा गया है।
- और, इसे अर्धमागधी भी कहा जाता है।
- तथा, निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है।
- बारह अंग, बारह उपंगस, दस परिक्रमा, छह छेदसूत्रास, चार मूलसुत्रास और दो सूत्र-ग्रन्थस।
- और, चौदह पार्वस महावीर के उपदेशों का सबसे पुराना पाठ है।
- इसके अलावा, महत्वपूर्ण जैन ग्रंथो के नाम हैं।
- कल्पसूत्र, भद्रबाहु चरिता, परिशिष्टा पार्वण और त्रिषष्टिशलाका पुरुष
हिंदी में पड़े Chandragupta Maurya empire
Sects of Jainism (जैन धर्म के संप्रदाय)
- 298 ईसा पूर्व में, मगध में एक गंभीर अकाल पड़ा,
- जिससे कई जैन भिक्षुओं का दक्खन और दक्षिण भारत में पलायन हुआ, भद्रबाहु और चंद्रगुप्त मौर्य के साथ।
- उसके वाद वे बारह साल बाद वापस लौटे।
- तव, मगध में वापस रहने वाले समूह के नेता शतुलभद्र थे।
- जब दक्षिण भारत से जैन भद्रबाहु और अन्य लोग लौटे थे,
- तो उन्होंने कहा कि पूर्ण नग्नता महावीर के शिक्षण का एक अनिवार्य हिस्सा है।
- जबकि मगध में भिक्षुओं ने सफेद कपड़े पहनना शुरू कर दिया था
- और, इस प्रकार दो संप्रदायों हो गए।
- श्वेताम्बर श्वेत वर्ण के हो गए।
- और, दिगंबर आकाश वर्ण के हो गए।
- श्वेताम्बर अर्थात् जो श्वेत वस्त्र धारण किये हुए शूलभद्र थे।
- और, दिगंबर यानी वे जो नग्न भद्रबाहु थे।
Jain Architecture
जैन वास्तुकला
- जैन वास्तुकला में मंदिर के वारे में वर्णन है।
- जिनमे कुछ प्रसिद्ध मदिर के नाम है।
- जैन वास्तुकला में गुम्फा अर्थात् गुफाएँ के वारे में उल्लेख है। हाथीगुम्फा, बाघगुम्फा आदि…
- और, उदयगिरि और खंडगिरि खारवेला में है। जो की उड़ीसा राज्य में स्थित है।
- तथा, दिलवाड़ा मंदिर, विमला वसही मंदिर, तेजपाल मंदिर माउंट आबू, राजस्थान में स्थित है।
- गिरनार मंदिर, पालीताना मंदिर गुजरात में स्थित है।
- तथा, पावापुरी मंदिर और राजगृह मंदिर बिहार में स्थित है।
Jain diet of Jainism (जैन धर्म के जैन आहार)
- जैन शाकाहार का पालन जैन संस्कृति और दर्शन के अनुयायी करते हैं।
- यह भारतीय उपमहाद्वीप और उससे आगे के आध्यात्मिक रूप से प्रेरित आहार का सबसे कठोर रूप है।
- जैन भोजन पूरी तरह से शाकाहारी है।
- और, छोटे कीड़े और सूक्ष्मजीवों को रोकने के लिए
- तथा, पूरे संयंत्र को उखाड़ने और मारने से रोकने के लिए भूमिगत सब्जियों जैसे आलू, लहसुन, प्याज आदि को भी बाहर करता है।
- और, यह जैन तपस्वियों द्वारा किया जाता है एवं जैनियों को बताता है।
- मांस, मछली और अंडे खाने पर जैन आपत्ति रखता है।
- क्यों की जैन धर्म अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित है।
- प्रत्येक कार्य जिसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हत्या या चोट का समर्थन करने वाले व्यक्ति को हिंसा के रूप में देखा जाता है।
- जो हानिकारक प्रतिक्रिया कर्म करता है।
- अहिंसा का उद्देश्य ऐसे कर्म के संचय को रोकना है।
- जैनों का मानना है कि अहिंसा सभी के लिए सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य है।
- अहिंसा परमो धर्म, एक बयान जो अक्सर जैन मंदिरों पर अंकित होता है।
- जैनियों के लिए, लैक्टो-शाकाहार अनिवार्य है।
- भोजन पौधों से उत्पन्न होने के लिए प्रतिबंधित है।
- क्योंकि पौधों में केवल एक ही अर्थ है ‘इकिंड्रिया’
- लेकिन कुछ डेयरी उत्पाद हैं, जो भोजन जिसमें मृत जानवरों या अंडों के शरीर के सबसे छोटे कण भी शामिल हैं, उसे अस्वीकार्य किया गया है।
- तथा, कुछ जैन विद्वान और कार्यकर्ता शाकाहारी होने का समर्थन करते हैं,
- क्योंकि डेयरी उत्पादों के आधुनिक व्यावसायिक उत्पादन में खेत जानवरों के खिलाफ हिंसा शामिल है।
- प्राचीन समय में, डेयरी जानवरों की अच्छी तरह से देखभाल की जाती थी
- तथा, जानवरों को नहीं मारा जाता था।
- और, जैन ग्रंथों के अनुसार, एक गृहस्थ को चार महा-विग्रह – शराब, मांस, मक्खन और शहद का सेवन नहीं करना चाहिए।
Some Important Points about Jainism
- महावीर को आमतौर पर एक बैठे या खड़े ध्यान मुद्रा में चित्रित किया जाता है।
- जिसमें उनके नीचे एक शेर का प्रतीक होता है।
- उनकी आरंभिक प्रतिमा उत्तर भारतीय शहर मथुरा में पुरातात्विक स्थलों से है।
- और, पहली शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी सन् तक की है।
- उनके जन्म को महावीर जन्म कल्याणक के रूप में मनाया जाता है,
- और उनका निर्वाण जैनियों द्वारा दिवाली के रूप में मनाया जाता है।
- उत्तर भारत में जैन धर्म को मानने वाले कुछ शासक थे, जो जैन धर्म (Jainism Religion) के अनुयायि थे।
- हर्यंका वंश में बिम्बिसार, अजातशत्रु, नंदास और उदायिन जैसे शासक जैन धर्म के अनुयाई थे।
- तथा, दक्षिण भारत में कदम्ब वंश और गंगा वंश जैन धर्म के संरक्षक थे।
- और, चालुक्य और सोलंकी वंश जैन धर्म के अंतिम संरक्षक थे।
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इसके साथ Jainism पोस्ट से जुड़े कुछ प्रश्न और उत्तर निम्न में जोड़े गए है, इसे पड़े।
Some Important Question and Answer related this post
1. महावीर का जन्म 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में कहा हुआ था?
a. सारनाथ
b. मगध
c. वैशाली
d. इनमें से कोई नहीं
Ans. c. वैशाली
2. जैनियों का धार्मिक साहित्य प्रारंभिक अवस्था में किस भाषा में लिखा गया था?
a. पाली
b. संस्कृत
c. अर्धमगधि
d. इनमें से कोई नहीं
Ans. c. अर्धमगधि
3. जैन धर्म का संबंध निम्नलिखित में से किस स्थान से है?
a. श्रावस्ती
b. कपिलवस्तु
c. पावा
d. प्रयाग
Ans. c. पावा
4. जैन धर्म को बौद्ध धर्म से अलग करने वाला सिद्धांत क्या है?
a. सभी प्राणियों और चीजों के लिए एक आत्मा का गुण
b. आठ गुना पथ का अभ्यास
c. पुनर्जन्म में विश्वास
d. वेदों की अयोग्यता की अस्वीकृति
Ans. a. सभी प्राणियों और चीजों के लिए एक आत्मा का गुण
5. निगंठ नाटपुत्र के नाम से भी किसे जाना जाता है?
a. शंकराचार्य
b. वर्धमान महावीर
c. गौतम बुद्ध
d. नागार्जुन
Ans. b. वर्धमान महावीर
6. महावीर जैन ने किस जगह पर अंतिम सांस ली थी?
a. समस्तीपुर
b. राजगीर
c. रांची
d. पावापुरी
Ans. d. पावापुरी
Jainism post related Question and Answer
1. महावीर स्वामी का जन्म कहाँ हुआ था?
a. वैशाली
b. कुण्डग्राम
c. पाटलिपुत्र
d. मगध
Ans. b. कुण्डग्राम
2. पार्श्वनाथ के साथ निम्नलिखित में से किस स्थान पर जैन सिद्धक्षेत्र माना जाता है?
a. सम्मेद सिखर
b. पावा
c. उर्जयंता
d. चंपा
Ans. सम्मेद सिखर
3. तीन रत्नों का सिद्धांत सही विश्वास, सही आचरण और सही ज्ञान किस धर्म से आधारित है?
a. ईसाई धर्म
b. बुद्ध धर्म
c. जैन धर्म
d. इनमें से कोई नहीं
Ans. c. जैन धर्म
4. अंतिम जैन तृथंकरा का नाम क्या है?
a. सुभद्रा
b. पार्श्वनाथ
c. सिद्धार्थ
d. महावीर
Ans. d. महावीर
5. कहा जाता है कि महावीर की मृत्यु के बाद जैन संघ के प्रमुख कौन बने?
a. सुधर्मा
b. जम्बू
c. भद्रबाहु
d. स्थूलभद्र
Ans. a. सुधर्मा
6. प्राचीन जैन धर्म के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
a. जैन धर्म दक्षिण भारत में स्थलबाहु के नेतृत्व में फैला था
b. जैन धर्म के प्रारंभिक चरण में जैनों ने बौद्ध के विपरीत छवियों की पूजा की
c. भद्रबाहु के नेतृत्व में रहने वाले जैनों को पाटलिपुत्र में आयोजित परिषद के बाद श्वेतांबर कहा जाता था।
d. जैन धर्म ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में कलिंग राजा खारवेला के संरक्षण का प्रसन्नता लिया था
Ans. d. जैन धर्म ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में कलिंग राजा खारवेला के संरक्षण का प्रसन्नता लिया था
7. ‘अनेकान्तवाद’ निम्न में से किस धर्म का एक मुख्य सिद्धांत और दर्शन है?
a. वैष्णव
b. बुद्ध धर्म
c. जैन धर्म
d. सिक्खिम
Ans. c. जैन धर्म