Post Gupta Period Hindi | गुप्त काल के बाद की अवधि हिन्दी
नमस्कार दोस्तों Post Gupta Period की यह पोस्ट में आपसभी का स्वागत है। इस पोस्ट में आज हम Post Gupta Period के बारे में जानेंगे। भारत में गुप्त शासन काल की अंतिम चरण में जब मध्य एशिया से जनजाति कबीले हूण ने भारत में आक्रमण किया। तो उस समय गुप्त साम्राज्य की नींव कमज़ोर होना शुरू हो गया था। और, गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात भारत की राजनीति में विकेन्द्रीकरण तथा अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया था। और, अनेक स्थानीय सामन्तों एवं शासकों ने साम्राज्य के विस्तृत क्षेत्रों में अलग-अलग छोटे-छोटे राजवंशों की स्थापना कर ली थी। और, उत्तर भारत में हूण, पुष्यभूति, मौखरि, गौड और मैत्रक जैसे प्रमुख शक्तियां फैल गयी थी।
दोस्तों यह पोस्ट पड़ने के साथ साथ नीचे दिए गए Link में Click करके गुप्त साम्राज्य के इतिहास को भी पड़े। इससे आपको गुप्त साम्राज्य के बारे में समझने में आसानी होगी।
Vardhan Dynasty (550-647 AD) in Post Gupta Period
- भारत में लगभग 6 वीं शताब्दी के आसपास पुष्यभूति या वर्धना वंश की स्थापना पुष्यभूति द्वारा थानेश्वर में की गई थी।
- जो की करनाल जिला, हरियाणा क्षेत्र में आता है।
- और, गुप्त शासन काल में पुष्यभूति गुप्तों के सामन्त थे।
- लेकिन हूण आक्रमणों के बाद पुष्यभूति ने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर लिया था।
- और, पुष्यभूति / वर्धना वंश की स्थापना कर दी थी।
- लेकिन पुष्यभूति उतना महत्वपूर्ण शासक नही था।
- इस राजवंश में 580 ईसा से 605 ईसा के बिच में महत्वपूर्ण शासक हुए।
- और, इस राजवंश का पहला महत्वपूर्ण शासक प्रभाकरवर्धन था।
- प्रभाकरवर्धन ने हूणों को भी पराजित किया था।
- जिसके कारण हूण भारत में सबसे अधिक प्रभाकरवर्धन से डरते थे।
- और, इन्होने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि भी धारण की थी।
- प्रभाकरवर्धन के दो पुत्र थे राज्यवर्धन और हर्षवर्धन।
- और, एक पुत्री थी राज्यश्री।
- राज्यवर्धन प्रभाकरवर्धन के बड़े पुत्र थे।
- तथा, हर्षवर्धन उनके छोटे पुत्र थे।
- और, प्रभाकरवर्धन ने अपनी पुत्री राज्यश्री का विवाह उत्तरप्रदेश और बिहार के क्षेत्र में शासन करने वाले कन्नौज वंश के मौखरि राज्य के शासक ग्रहवर्मन के साथ करवाया था।
King Rajyavardhana in Vardhana Dynasty
- प्रभाकरवर्धन के मृत्यु के प्रश्चात राज्यवर्धन (605-606 ईसा) इस राजवंश का राजा बना।
- और, उसी समय राज्यवर्धन की बहनोई ग्रहवर्मन के साथ मालवा (मध्यप्रदेश) के शासक देवगुप्त की शत्रुता अति अधिक चल रहा था।
- देवगुप्त जो की मालवा का शासक था।
- वे गुप्त राजा महासेनगुप्त के पुत्र थे।
- और, देवगुप्त के साथ बंगाल के गौड़ वंश के शासक शशांक राजा के साथ भी अच्छी मित्रता थी।
- जिनके सहयोग से कन्नौज के मौखरि राज्य पर देवगुप्त ने आक्रमण कर कन्नौज शासक ग्रहवर्मन की हत्या कर दिया।
- और, ग्रहवर्मन की पत्नी राज्यश्री को बंदी बना लिया था।
- इसलिए, राज्यवर्धन ने देवगुप्त के खिलाफ एक अभियान चलाया और उसे मार डाला था।
- और, अपनी बहन राज्यश्री को बचाने क्या प्रयास किया था।
- और, ठीक उसी समय लगभग 606 ईसा के आसपास शशांक ने अपने मित्र देवगुप्त की हत्या की प्रतिशोध लेने के लिए धोके से राज्यवर्धन की हत्या कर दी थी।
- जिसके कारण राज्यवर्धन की बहन राज्यश्री ने अपने प्राण को बचाते हुए जंगल की तरफ भागी थी।
Harshavardhana (606-647 AD) in Post Gupta Period
- राज्यवर्धन की हत्या के बाद, उनके छोटे भाई, हर्षवर्धन ने लगभग 606 ईस्वी में पुष्यभूति / वर्धन राजवंश के सिंहासन पर चढ़ाई की थी।
- तब हर्षवर्धन की आयु महज सोलह साल की थी।
- और, इसी वर्ष से ‘’हर्ष युग’’ की शुरुवाद किया गया था।
- सिंहासन पर चढ़ने के बाद हर्षवर्धन ने सबसे पहले अपनी विधवा बहन राजश्री को विंध्य के जंगल से बचाया था।
- और, कन्नौज में कब्ज़ा कर बैठे शशांक को कन्नौज से बाहर निकाल दिया था।
- तथा, कन्नौज को थानेश्वर के साथ एकीकृत किया और अपने राजधानी को थानेश्वर से कन्नौज में स्थापित कर दिया था।
- जिसके कारण उन्हें उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली राजा बना दिया था।
- तथा, हर्षवर्धन को ‘सिलादित्य’ के नाम से भी जाना जाता है।
- इसके बाद, हर्षवर्धन ने अपने बड़े भाई, राज्यवर्धन और बहनोई ग्रहवर्मन की हत्या का बदला लेने के लिए बंगाल के गौड़ राजवंश के विरुद्ध अपने पहले अभियान चलाया था।
- लेकिन हर्षवर्धन को सफलता प्राप्त नही हो पाया था।
- और, 637 ईस्वी में गौड़ राजवंश के राजा शशांक की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल के करीब दूसरे अभियान में बंगाल तथा मालवा साम्राज्य को जीत लिया था।
The time of Harshavardhana’s reign in Post Gupta Period
- हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल में वल्लभी के मैत्रक शासक ध्रुवसेन द्वितीय को भी हराया था।
- हालांकि, पश्चिमी सीमा की सुरक्षा को सुरक्षित रखने के लिए, हर्षवर्धन ने ध्रुवसेन द्वितीय को बहाल कर दिया था।
- और, अपनी बेटी की शादी ध्रुवसेन द्वितीय से कर दी थी।
- तथा, ध्रुवसेन द्वितीय ने एक सामन्ती (जागीरदार) की स्थिति को स्वीकार कर ली थी।
- और, यह हर्षवर्धन की एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि थी।
- लेकिन, हर्षवर्धन की इस विजय अभियान में उन्हें दक्खन (Deccan) और दक्षिण भारत की वातापी / वडामी के चालुक्य वंश के पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा के तट पर निर्णायक पराजित किया था।
- यह हार हर्षवर्धन के जीवन की एकमात्र हार थी।
- और, इसका वर्णन ऐहोल शिलालेख में पाई गई है।
- इसके साथ हर्षवर्धन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में उत्तरी भारत, पूर्वी राजस्तान और गंगा घाटी से लेकर असम तक थी।
- तथा, हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल के दौरान अपने कूट-नीतिक संबंध को बनाए रखने के लिए 641 ईसा में अपने दूत को चीन में भेजा था।
- और, प्रसिद्ध चीनी तीर्थयात्री Hiuen-Tsang हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आये थे।
- उन्होंने लगभग आठ वर्ष (635-643 ईसा) तक भारत में बिताए थे।
Some important facts related to Harshavardhan’s life
- Hiuen-Tsang ने हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान दो सबसे प्रसिद्ध घटनाओं का उल्लेख किया है।
- पहला घटना 643 ईस्वी में कन्नौज विधानसभा को Hiuen-Tsang के सम्मान में आयोजित किया गया था।
- और, बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय को लोकप्रिय बनाया गया था।
- तथा, दूसरा घटना हे, प्रयाग में हर्षवर्धन अपने शासनकाल के हर पांच साल के अंत में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर धार्मिक त्योहार मनाता था।
- कहा जाता है कि यह कुंभ मेले की शुरुआत थी।
- इसके साथ हर्षवर्धन एक शिव-भक्त भी थे,
- लेकिन, वे अन्य संप्रदायों के देवताओं को भी समान सम्मान देते थे।
- इसलिए Hiuen-Tsang ने हर्ष को एक उदार बौद्ध या महायान के रूप में चित्रित किया था।
- Hiuen-Tsang के अनुसार हर्षवर्धन के शासनकाल के समय ही नालंदा विश्वविद्यालय प्रमुख शिक्षा का केंद्र था।
- जहा पे बौद्धधर्म से सम्बंधित शिक्षा दी जाती थी।
- और, Hiuen-Tsang ने भारत में आठ साल तक बौद्धधर्म की जानकारी को संग्रह किया, और फिर चीन वापस लौट गए थे।
Harshavardhan Was an Author and Patron
- हर्षवर्धन एक अच्छे कुशल लेखक थे।
- उन्होंने तीन संस्कृत नाटक लिखे थे।
- जिनके नाम है, नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका।
- इसके साथ हर्षवर्धन सीखने के भी संरक्षक थे।
- उनके दरबार में एक विद्वानों के समूह थे।
- जिनमे हर्षवर्धन एकत्रित हो गया था।
- और, उनके विद्वानों के समूह में बाणभट्ट नामक एक महान विद्वान और कवि थे।
- बाणभट्ट ने हर्षचरित नामक एक पुस्तक की रचना की थी।
- जिसमे हर्ष के शासनकाल के पहले भाग की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन है।
- इसके साथ बाणभट्ट ने कादम्बरी नामक और एक पुस्तक की रचना की थी।
- कादम्बरी पुस्तक महान साहित्यिक योग्यता का एक काव्य के रूप में आधारित है।
- तथा, संयुक्त रूप से शतकत्रयी कहे जाने वाले निति शतक, शृंगार शतक और वैराग्य शतक के भी लेखक थे।
‘’The last life of Harshavardhan’’
- हर्षवर्धन ने गुप्तों साम्राज्य की तरह ही अपने साम्राज्य पर शासन किया था।
- और, वे पुष्यभूति / वर्धना वंश वंश के सबसे पराक्रमी और शक्तिशाली राजा थे।
- और, 647 ईस्वी में हर्षवर्धन की मृत्यु हुई थी।
- तथा, उनकी मृत्यु के प्रश्चात ज्यादा जानकारी प्राप्त नही है।
Chalukyas of Vatapi / Vadami 543 – 755 AD (Deccan and South India)
- दक्षिण भारत में चालुक्यों ने कर्नाटक में बीजापुर जिले में वातापी / बादामी में अपनी राजधानी स्थापित की थी।
- चालुक्य के तीन शाखाये थी, बादामी के चालुक्य, वेंगी के चालुक्य और कल्याणी के चालुक्य।
- इसमें बादामी के चालुक्य मुख्य शाखा थी।
- जिसे पश्चिमी चालुक्य भी कहा जाता है।
- और, चालुक्यों ने वाकाटक शक्ति को भी उखाड़ फेंका था।
- तथा, इस राजवंश के संस्थापक के रूप में पुलकेशिन प्रथम (543 – 566 ईसा) को जाना जाता है।
- और, महाकुट अभिलेख में पुलकेशिन प्रथम से पहले जयसिंह और रणराग नामक दो चालुक्य राजाओं के नाम उल्लेख है।
- हालाँकि इससे अधिक जानकारी प्राप्त नही है।
- और, इस राजवंश के सबसे शक्तिशाली सम्राट थे पुलकेशिन द्वितीय।
- जो पुलकेशिन प्रथम के पौत्र (Grandson) था।
- और, पुलकेशिन द्वितीय का एक छोटा भाई था, जिनका नाम था विष्णुवर्धन।
- जो वेंगी के चालुक्य का संस्थापक था।
- तथा, पुलकेशिन द्वितीय के पिता का नाम कीर्तिवर्मन प्रथम था।
- और, कीर्तिवर्मन प्रथम के छोटे भाई का नाम मंगलेश था।
- और, यह दोनों पुलकेशिन प्रथम के पुत्र थे।
- तथा, पुलकेशिन प्रथम के बाद उनका पुत्र कीर्तिवर्मन प्रथम (566 – 597 ईसा) चालुक्य वंश का राजा बना।
- और, उन्होंने कई छोटे छोटे साम्राज्य को भी विजय प्राप्त किया था।
- इसके बाद कीर्तिवर्मन प्रथम की जब मृत्यु हुई, तो उनके छोटे भाई मंगलेश ने चालुक्य राजगद्दी पर बेठा।
- क्यों की उस समय कीर्तिवर्मन प्रथम के पुत्र नबालिक थे।
- और, बाद में जब कीर्तिवर्मन प्रथम के पुत्र पुलकेशिन द्वितीय बड़े हुए तो राजगद्दी को लेकर कलह हुए।
- जिसके फलस्वरूप पुलकेशिन द्वितीय ने अपने चाचा मंगलेश की हत्या कर चालुक्य वंश की गद्दी पर बेठ गया।
- और, शसन करने लगा था।
Pulakesin II (609 – 642 AD) in Post Gupta Period
- पुलकेशिन द्वितीय चालुक्य राजवंश का सबसे शक्तिशाली और पराक्रमी शासक था।
- उन्होंने पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य की परिचालना करते हुए उत्तरी भारत के शासक हर्षवर्धन को नर्मदा नदी के तट पर युद्ध में पराजित किया था।
- और, दक्षिण के तरफ पल्लव साम्राज्य को रोकते हुए अपने वीरता का परिचय दिया और सदियों तक शासन किया था।
- पुलकेशिन द्वितीय ने सत्याश्रय-श्री-पृथ्भी-बल्लभ-महाराज और परमेश्वर की उपाधि भी धारण की थी।
- तथा, इनकी दरबारी कवि थे रविकीर्ति।
- जिन्होंने, ऐहोल शिलालेख में पुलकेशिन द्वितीय की गुणों का वर्णन किया है।
- पुलकेशिन द्वितीय के शासनकाल में ही Hiuen-Tsang ने उनके साम्राज्य का यात्रा किया था।
- तथा, इस वंश के शासनकाल में ही संरचनात्मक मंदिरों के निर्माण में वेसरा शैली (डेक्कन बनावट) की शुरुआत हुई थी।
- इसके प्रश्चात चालुक्य साम्राज्य पर पल्लव शासक नरसिंहवर्मन प्रथम ने आक्रमण कर दिया था।
- और, इस युद्ध में उन्होंने पुलकेशिन द्वितीय को पराजित कर और वातापी / बादामी पर कब्जा कर लिया था।
- और, वतापिक्कोंडा यानी वतापी के विजेता की उपाधि धारण की थी।
- वैसे तो चालुक्य वंश में कई राजा हुए।
- लेकिन, पुलकेशिन द्वितीय सबसे प्रसिद्ध थे।
‘’Chalukyan Temples’’ (Post Gupta Period)
- चालुक्यों ने कई मंदिरों को बनवया था।
- और, ऐहोल तथा पट्टदकल में इनके कई मंदिरों है।
- जिनमे से ऐहोल में कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के नाम है, जिनेन्द्र मंदिर / मेगुती मंदिर, दुर्गा मंदिर और विष्णु मंदिर आदि…
- इसलिए ऐहोल को ‘मंदिरों का शहर’ कहा जाता है,
- क्योंकि इसमें लगभग 70 मंदिर हैं।
- और, पट्टदकल के मंदिरों में द्रविड़ बनावट के मंदिर है, संगमेश्वर मंदिर और विरुपाक्ष मंदिर,
- तथा, नगारा बनावट के मंदिर है, पापनाथ मंदिर आदि…
Pallavas of Kanchi (575 – 800 AD) in Post Gupta Period
- पल्लव एक स्थानीय जनजाति थे,
- जिन्होंने टोंडिमंडलम या लताओं की भूमि में अपना अधिकार को स्थापित किया था।
- तथा, चालुक्य और पल्लव वंश दोनों ने कृष्ण और तुंगभद्रा नदी के बीच भूमि पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश की थी।
- पल्लवों रूढ़िवादी ब्राह्मणवादी हिंदू थे।
- और, पल्लवों ने अपने साम्राज्य के लिए कांची को राजधानी बनाया था।
- और, इस वंश के प्रथम शासक थे सिंहविष्णु (575 – 600 ईसा) ।
- जिन्होंने चेरा, मलय और सिंहल जैसे कई राजाओं को पराजित किया था।
- और, इनके राजसभा में एक संस्कृत कवि थे, जिनका नाम था ‘भारवि’ ।
- इन्होने, ‘किराताजुनियम’ की रचना की थी।
- तथा, इस वंश में सिंहविष्णु के प्रश्चात उनके पुत्र महेन्द्रवर्मन प्रथम राजा बने।
- लेकिन, चालुक्य के साथ संघर्ष में पुलकेशिन द्वितीय ने महेन्द्रवर्मन प्रथम को पराजित किया था।
- और, इसी पराजय का बदला लेने के लिए महेन्द्रवर्मन प्रथम के पुत्र नरसिंहवर्मन प्रथम ने चालुक्य के राजा पुलकेशिन द्वितीय को बुड़ी तरीके से युद्ध में पराजित कर लगभग 642 ईसा में वातापी / बादामी को जीत लिया था।
- जिसके कारण इन्होने ”मम्मला” की उपादि भी धारण की थी।
- और, इस वंश के सबसे शक्तिशाली राजा नरसिंहवर्मन प्रथम थे।
- इसके इलावा, इस राजवंश में कई राजा हुए।
- और, इस वंश के अंतिम शासक थे नंदीवर्मन द्वितीय (730 – 800 ईसा) ।
- तथा, पल्लव वंश ने दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति को फैलाने में सहायक थे।
- और, 8 वीं शताब्दी ईसा तक पल्लव का प्रभाव कंबोडिया में प्रमुख था।
- इसके साथ जावा, कंबोडिया और अन्नाम के मंदिरों के शिखर में पल्लव नमूना पाया गया है।
Pallava Architecture-पल्लव वास्तुकला (Post Gupta Period)
- पल्लवों ने अपनी मंदिर वास्तुकला में द्रविड़ बनावट शुरू की थी।
- और, पल्लवों की मंदिर की वास्तुकला में विशेष रूप से विकास के चार चरणों में देखा जा सकता है,
- पहला चरण – शासक महेन्द्रवर्मन प्रथम (600 – 630 ईसा) – अनंतेश्वर मंदिर (उंटावल्ली, गुंटूर जिला)
- द्वितीय चरण – शासक नरसिम्हावरमण प्रथम (630 – 668 ईसा) – मंडम् मंदिर और रथ मंदिर (महाबलिपुरम)
- तृतीय चरण – शासक नरसिम्हावर्मना द्वितीय (680 – 720 ईसा) – कैलाशनाथ मंदिर और वैकुंठ पेरुमल मंदिर (कांची), शोर मंदिर (ममालापुरम)
- चतुर्थ चरण – शासक नंदीवर्मन (730 – 800 ईसा) – मुक्तेश्वर मंदिर और मातंगेश्वर मंदिर (कांची), परशुरामेश्वर मंदिर (गुडीमल्लम)
- इसके साथ पल्लवों ने दक्षिण भारत में मूर्तिकला के विकास में भी योगदान दिया था।
- और, पल्लवों की मंदिर वास्तुकला में द्रविड़ बनावट जो चोलों की शासनकाल में शिखर तक पहुंच गई थी।
दोस्तों आशा करती हु Post Gupta Period की यह पोस्ट पड़कर आपसभी को अच्छा लगा है। इस पोस्ट में Post Gupta Period में वर्धन राजवंश और दक्षिण में वातापी के चालुक्य तथा कांची का पल्लव राजवंश की महत्वपूर्ण जानकारी को सरल तरीके से वर्णन किया गया है। ताकि आपको पड़ने में आसानी हो। यदि यह पोस्ट पड़कर आपसभी को पसंद आया है, तो कृपया यह पोस्ट को Facebook, twitter, pinterest and Instagram जैसे Social sites पर share करे। और, यह पोस्ट पड़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद।
इसके साथ Post Gupta Period से जुड़ी कुछ प्रश्न और उत्तर निम्न में जोड़े गए है। इसे पड़े,
Some Objective type Question and Answer about Post Gupta Period post
1. दो महान धार्मिक सम्मेलन राजा हर्षवर्धन द्वारा कहा पे आयोजित किए गए थे?
a. वल्लभी और प्रयाग
b. कन्नौज और प्रयाग
c. प्रयाग और थानेश्वर
d. थानेश्वर
Ans. b. कन्नौज और प्रयाग
2. ताई त्सुंग सम्राट ने किस न्यायालय में चीनी दूतावास भेजा था?
a. राजेंद्र प्रथम
b. हर्षवर्धन
c. प्रांताका प्रथम
d. राजराजा प्रथम
Ans. b. हर्षवर्धन
3. ह्युन-त्सांग को हर्ष के दरबार में दूत के रूप में किसने भेजा था?
a. तुंग-कुआँ
b. केयू येन-वू
c. ताई त्सुंग
d. टी. यंग
Ans. c. ताई त्सुंग
4. हर्षवर्धन को किसने हराया था?
a. शशांक
b. प्रभाकरवर्धन
c. पुलकेशिन द्वितीय
d. नरसिंहवर्मन
Ans. c. पुलकेशिन द्वितीय
5. सम्राट हर्षवर्धन को दक्षिण में नर्मदा नदी के तट पर किसने रोक दिया गया था?
a. पुलकेशिन द्वितीय
b. विक्रमादित्य द्वितीय
c. प्रभाकरवर्धन
d. विक्रमादित्य मैं
Ans. a. पुलकेशिन द्वितीय
6. हर्षवर्धन ने निम्नलिखित में से किसकी रचना नहीं की थी?
a. नागानंद
b. रत्नावली
c. हर्षचरित
d. प्रियदर्शिका
Ans. c. हर्षचरित
7. निम्नलिखित में से किस शिलालेख में हर्षवर्धन के खिलाफ पुलकेशिन द्वितीय की सैन्य सफलता का उल्लेख है?
a. दामोदरपुर कॉपर-प्लेट शिलालेख
b. इलाहाबाद स्तंभ शिलालेख
c. बिलसाद शिलालेख
c. ऐहोल शिलालेख
Ans. c. ऐहोल शिलालेख
8. शशांक की राजधानी कहाँ थी?
a. लखनावती
b. समेटता
c. ताम्रलिप्त
d. कर्ण सुवर्ण
Ans. d. कर्ण सुवर्ण
9. दक्षिण भारत में हर्षवर्धन के अभियान में कौनसे शासक थे?
a. विक्रमादित्य द्वितीय
b. पुलकेशिन द्वितीय
c. विक्रमादित्य प्रथम
d. प्रभाकरवर्धन
Ans. b. पुलकेशिन द्वितीय
10. हर्षचरित किसने लिखी थी?
a. विष्णुगुप्त
b. परिमालगुप्त
c. कालिदास
d. बाणभट्ट
Ans. d. बाणभट्ट