Rajput Period India Hindi | उत्तर भारत में राजपूत काल
नमस्कार दोस्तों Rajput Period की यह पोस्ट में आपका स्वागत है। आजके इस पोस्ट में हम राजपूत की उत्पत्ति से लेकर राजपूतों की राजवंश के बारे में जानेंगे। हर्षवर्धन के मृत्यु के पश्चात (647 ई) भारत में कोई भी ऐसा शक्तिशाली राजा नहीं हुआ था, जिन्होंने भारत के वृहद भाग पर अपना शासन किया हो। लेकिन दक्षिण भारत में छोटे छोटे नए राज्य की उत्पत्ति होती है। वहां के शासकगण दक्षिण भारत में शासन करते थे।
और, इसी Rajput Period में उत्तर भारत में जैसे राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा आदि क्षेत्र में कुछ नए शासक उभर कर आते हे, और, शासन करने लगते है। और, यही शासकगण राजपूत शासक कहलाते है। राजपूत शासको का दौड़ लगभग सातवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक थी। और, इसी Rajput Period को राजपूत काल के नाम से भी जाना जाता है।
How Rajputs originated in the Rajput period?
- Rajput Period की सातवीं शताब्दी में राजपूत भारत में उभर कर आते हे और विभिन्न क्षेत्र पर राजा बनकर अस्थापित हो जाते है।
- लेकिन इतिहास में राजपूत की उत्पत्ति को लेकर कई इतिहासकारो का मत अलग अलग है।
- विदेशी इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राजपूत वह विदेशी जातियाँ है, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया था।
- और, वे राजपूतों को विदेशी सीथियन जाति की समरूप मानते थे।
- सीथियन जाति यूरेशिया के स्तेपी इलाक़े की एक प्राचीन ख़ानाबदोश जातियों के गुट का नाम था।
- तथा, राजपूतों और सीथियन इन दोनों जातियों की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति एक बराबर थी।
- और, दोनों जातियों में पूजा का प्रचलन, याज्ञिक अनुष्ठानों का प्रचलन, अस्त्र-शस्त्र की पूजा का प्रचलन,
- रथ के द्वारा युद्ध को संचालित करने का प्रचलन, रहन-सहन और वेश-भूषा की समानता थी।
- जिससे यह प्रतीत होता है कि राजपूत सीथियन के ही वंशज थे।
- परन्तु विदेशी इतिहासकार ‘वी.ए. स्मिथ’ और कनिंघम के अनुसार शक तथा कुषाण जैसी विदेशी जातियां जो भारत में आक्रमण करने के लिए आये थे।
- वही जाति आगे चलकर भारतीय जातियों के साथ मिश्रित हो जाते है।
- और, कालक्रम में राजपूत के रूप में उभरते है।
- विदेशी इतिहासकार राजपूतों को विदेशी इसीलिए मानते थे,
- क्यों की यही इतिहासकार विदेशी थे,
- और, इनकी दृष्टिकोण से इतिहास को इन्होने देखा था।
- तथा, भारतीय इतिहासकार जैसे डॉ. गौरी शंकर ओझा और दशरथ शर्मा का मानना था की भारत में प्राचीन क्षत्रियां जो जातियां थी,
- वह जातियां आर्य से सम्बंधित थे।
- और, उन्ही जातियों के वंशज बाद में चलकर के राजपूतों के रूप में उभरते है।
इन्हे पड़े – Post-Gupta period
Chandbardai’s theory about the origin of Rajputs
- इतिहास में चंदबरदाई चारण ने राजपूत की उत्पत्ति को लेकर एक अलग सिद्धांत दिया है।
- चंदबरदाई ‘’पृथ्वीराज-रासो’’ की रचयिता है।
- पृथ्वीराज-रासो हिंदी भाषा में लिखा एक महाकाव्य है।
- जिसमे पृथ्वीराज चौहान के जीवन और चरित्र का वर्णन किया गया है।
- और, चंदबरदाई हिन्दी साहित्य के आदिकालीन कवि तथा पृथ्वीराज चौहान के मित्र थे।
- चंदबरदाई चारण लिखते हैं कि राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुंड से हुई हैं।
- जब पृथ्वी दैत्यों के आतंक से आक्रान्त और परेशान थी,
- तब महर्षि वशिष्ठ ने दैत्यों के विनाश के लिए आबू पर्वत पर एक अग्निकुण्ड का निर्माण कर यज्ञ किया।
- और, इस यज्ञ की अग्नि से चौहान, प्रतिहार, परमार, एवं सोलंकी / चालुक्य जैसे चार योद्धाओं की उत्पत्ति हुई।
- जिसके फलस्वरूप अन्य राजपूत वंश इन्हीं योद्धाओं की सन्ताने हैं।
Chauhan Dynasty in the Rajput period
- सातवीं शताब्दी में अजमेर के निकट ‘’शाकम्भरी’’ में वासुदेव के द्वारा चौहान वंश को स्थापित करने का वर्णन मिलता है।
- इस वंश के प्रारम्भिक शासक कन्नौज के गुज्जर प्रतिहार शासको के अंतर्गत अपना शासन करते थे।
- और, दसवीं शताब्दी के शुरुवाती दौड़ में चौहान वंश के शासक ‘’वाकपतिराज प्रथम’’ ने आपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया था।
- इसीलिए चौहान वंश के वास्ताभिक संस्थापक के रूप में वाकपतिराज प्रथम को कहा जाता है।
- वैसे तो इस वंश के कई राजा हुए जैसे सिद्धराज, विग्रहराज द्वितीय, विग्रहराज तृतीया, अजयराज, अर्णोराज, विग्रहराज चतुर्थ और पृथ्वीराज चौहान तृतीया।
- इनमे से अजमेर नगर की स्थापना इसी वंश के राजा ‘’अजयराज’’ ने आपने शासन काल के दौरान किया था।
- और, अजमेर को आपनी राजधानी बनाई थी।
- और, इस वंश की राजा विग्रहराज चतुर्थ ने आपने शासन काल के समय तोमरो वंश की स्वतंत्रता को छीनकर आपने आधीन सामन्त बनाया था।
- तोमर राजवंश ने दिल्ली शहर को बसया है।
- तथा, इस चौहान वंश के सबसे प्रतापी और शक्ति शाली राजा थे (1178 ईसा) पृथ्वीराज चौहान तृतीया।
- इन्हे रायपिथौरा भी कहा जाता है।
- और, वे सोमेश्वर राजा के पुत्र थे।
- 1191 ईसा में पृथ्वीराज चौहान तृतीया ने एक युद्ध किया था मोहम्मद ग़ोरी के साथ।
- जिसे इतिहास में तराइन का प्रथम युद्ध के नाम से जाना जाता है।
- इस युद्ध में मोहम्मद ग़ोरी हार जाता है, और पृथ्वीराज उसे छोड़ देता है, क्यों की वे बहुत दयालु किसम के थे।
- लेकिन 1192 ईसा में मोहम्मद ग़ोरी ने फिर से आक्रमण किया और पृथ्वीराज चौहान तृतीया को तराइन का द्वितीय युद्ध में पराजित कर देता है।
- इसके वाद इस वंश का राजा गोविन्दा हुए लेकिन कुछ समय के अन्तराल मुहम्मद गौरी का गुलाम क़ुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा चौहान वंश का दमन कर दिया जाता है।
Pratihara Dynasty in the Rajput period
- गुर्जर प्रतिहार राजवंश का स्थापना नागभट्ट प्रथम ने 725 ई॰ में की थी।
- यह राजवंश गुजरात और राजस्थान के दक्षिण पश्चिम सीमा क्षेत्र तक फैला हुआ एक भारतीय वंश था।
- इस साम्राज्य की प्राम्भिक राजधानी मध्यप्रदेश में बसा शिप्रा नदी के किनारे उज्जैन में थी।
- आठवीं शताब्दी में नागभट्ट प्रथम के समयकाल में ही भारत में अरबों का आक्रमण शुरू हो चुका था।
- मुहम्मद बिन क़ासिम वह पहला मुसलिम शासक था जिन्होंने सिन्ध और मुल्तान पर अधिकार कर लिया था।
- इसके वाद कई मुसलिम आक्रमणकारी गुजरात के रास्ते भारत में घुसने की प्रयास किया लेकिन नागभट्ट प्रथम ने उनसभी को खदैड़ दिया था।
- और, इस वंश की प्राथमिक जानकारी पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल शिलालेख से मिलती है।
- लेकिन, आठवीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहार वंश के और एक शक्तिशाली शासक वत्सराज के शासनकाल में त्रिपक्षीय संघर्ष हुए थे।
- जिसमे, पूर्व में पाल वंश, उत्तर में गुर्जर प्रतिहार एवं दक्कन ( Deccan) में राष्ट्रकूट थे।
- और, वत्सराज ने कन्नौज के नियंत्रण के लिए पाल शासक धर्मपाल और राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग को पराजित कर दिया था।
- परन्तु राष्ट्रकूट शासक ध्रुव धारवर्ष ने लगभग 800 ई० में वत्सराज को पराजित किया था।
- और, ध्रुव धारवर्ष एकान्तरण के साथ ही पाल नरेश धर्मपाल ने फिर से कन्नौज पर कब्जा कर लिया था।
- वत्सराज के बाद उनका पुत्र नागभट्ट द्वितीय (805 – 833 ई॰) राजा बना,
- और, इन्होने धर्मपाल से कन्नौज को जित कर आपने साम्राज्य का केंद्र कन्नौज को बना दिया था।
- इसके बाद गुर्जर-प्रतिहार वंश के सबसे प्रभावशाली राजा थे मिहिरभोज।
- इन्होने आपने शासनकाल मे कन्नौज के राज्य का अधिक विस्तार किया था।
- तथा, मिहिरभोज विष्णु के उपासक थे,
- और, इन्होने आदिवराह की उपाधि भी धारण की थी।
- मिहिरभोज का शासनकाल प्रतिहार साम्राज्य के लिये स्वर्णकाल माना गया है।
- और, इस वंश का अंतिम शासक यशपाल था।
Parmar Dynasty of Malwa in the Rajput period
- परमार वंश के संस्थापक प्रमार था।
- प्रमार ऋषि वशिष्ठ द्वारा अग्निकुंड से प्रकट होने वाला एक पुरुष था।
- ऋषि वशिष्ठ ने विश्वामित्र के विरुद्ध युद्ध में सहायता प्राप्त करने के लिये आबु पर्वत पर एक यज्ञ किया था।
- जिसके फलस्वरूप प्रमार प्रकट हुआ और ऋषि वशिष्ठ के साथ देने का प्रण लिया था।
- इस वंश के आठवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में उपेन्द्र कृष्णराज दक्षिण के राष्ट्रकूटो वंश के सामंत थे।
- लेकिन, राष्ट्रकूटों के पतन के बाद (948 – 974 ई॰) सिंपाक द्वितीय के नेतृत्व में परमार वंश को मुक्त करा लिया गया था।
- इसीलिए सिंपाक द्वितीय को परमार वंश का असल संस्थापक माना जाता है।
- सिंपाक द्वितीय के दो पुत्र थे वाक्पति मुंज और सिंधुराज।
- इस वंश में वाक्पति मुंज अधिक शक्ति शाली राजा थे,
- तथा, इनके दरवार में पद्म्गुप्त, हलायुथ और धनंजय जैसे महान विद्वानो का निवास था।
- और, वे साहित्य, कला एवं संस्कृति के प्रधान संरक्षक थे।
- तथा, कृत्तिम मुंजसागर झील का निर्माण भी इन्होने करवाया था।
- वाक्पति मुंज ने चालुक्य सम्राट तैलप द्वितीय को छह बार युद्ध में पराजित किया था।
- लेकिन सातवीं युद्ध में चालुक्य सम्राट तैलप द्वितीय ने वाक्पति मुंज को पराजित कर उनकी हत्या कर दी थी।
- और, इस वंश में वाक्पति मुंज के प्रश्चात (995 – 1010 ई॰) सिंधुराज राजा बने,
- सिंधुराज की दरबार में राजकवि पद्दमगुप्त द्वारा रचित ‘नवसाहसांक चरितम’ में सिंधुराज की जीवन के चरित का वर्णन किया गया है।
Raja Bhoj (राजा भोज) in the Rajput period
- परमार वंश में सिंधुराज के बाद उनके पुत्र भोज (1010 – 1055 ई॰) राजा हुए और वे एक कविराज एवं संस्कृति का महान संरक्षक थे।
- राजा भोज ने चिकित्सा शास्त्र में आयुर्वेद सर्वस्व और स्थापत्य शास्त्र में समरांगणसूत्रधार जैसे 20 से अधिक ग्रंथों की रचना की थी।
- और, इन्होने भोजपुर नामक नगर की स्थापना की थी और आपने धारा नगरी में एक सरस्वती मंदिर तथा एक संस्कृत महाविद्यालय का निर्माण करवाया था।
- राजा भोज ने आपने शासन काल के दौरान कल्याणी के चालुक्यों और अन्हिलवाड़ के चालुक्यों को परास्त किया था।
- लेकिन चंदेल शासक विद्याधर के हाथों परास्त हुए थे। ।
- तथा, राजा भोज के शासन काल के अंतिम चरण में कल्याणी और अन्हिलवाड़ के चालुक्यों ने मिलकर मालवा पर आक्रमण किया,
- और, राजा भोज को पराजित कर उनकी हत्या कर दी थी।
- और, राजा भोज के मृत्यु के प्रश्चात “अद्यधारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती” जनप्रवाद प्रचलित हो गया था।
- जिसका अर्थ है विद्या और विद्वान् दोनों निराश्रित हो गए है।
Chaulukya / Solanki Dynasty of Gujarat
- गुजरात में अन्हिलवाड़ के चालुक्य वंश को सोलंकी वंश के नाम से जाना जाता है।
- सोलंकी वंश को महर्षि वशिष्ठ द्वारा किये गए यज्ञ की अग्निकुण्ड से उत्पन्न होने वाले राजपूत माने जाते है।
- प्राचीन ग्रंथ कुमारपाल चरित और वर्णरत्नाकर में कुल 36 सोलंकी राजपूतों का वर्णन मिलता है।
- और, यह वंश में कुछ राजा शैव धर्म के उपासक थे, परन्तु अधिकतर राजा जैन धर्म को मानते थे।
- सोलंकी वंश के संस्थापक के रूप में मूलराज प्रथम को जाना जाता है।
- और, अन्हिलवाड़ इस वंश की राजधानी थी।
- इस वंश में महत्वपूर्ण राजाओं में, भीम प्रथम, जयसिंह सिद्धराज, कुमारपाल और भीम द्वितीय थे।
- और, राजा भीम प्रथम के (1023 – 1065 ईसा) शासनकाल में ही महमूद ग़ज़नवी ने 1025 ईसा में गुजरात पर आक्रमण किया
- और, सोमनाथ मंदिर को लूटा एवं नष्ट कर दिया था।
- बाद में भीम प्रथम ने सोमनाथ मंदिर को फिर से ठीक करवा दिया था।
- तथा, भीम प्रथम के शासनकाल में उनके सामंत विमलशाह ने माउंट आबू पर्वत पर दिलवाड़ा जैन मंदिर का निर्माण किया था।
- इसके बाद इस वंश में राजा जयसिंह सिद्धराज के शासनकाल में प्रसिद्ध जैन विद्वान् हेमचन्द्र इनके दरबारी कवि थे।
- और, राजा कुमारपाल के शासनकाल में कुमारपाल ने चौहान और परमार वंश की आक्रमण को विफ़ल कर दिया था।
- तथा, पशुहत्या और मद्यपान के ऊपर प्रतिबंध भी लगाया था।
- और, भीम द्वितीय राजा (1178 – 1238 ईसा) इस वंश का अंतिम शासक था।
- इन्होने मोहम्मद ग़ोरी को 1178 ईसा और कुतुबुद्दीन ऐबक को 1195 ईसा में परास्त किया था।
- लेकिन, बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने भीम द्वितीय से गुजरात के अन्हिलवाड़ को छीन लिया।
- और, 1201 में कुतुबुद्दीन ऐबक से भीम द्वितीय ने आपने राज्य को फिर से प्राप्त कर लिया था।
Causes of the Decline of Rajputas
- भारत में सातवीं और बारहवीं शताब्दी के मध्य में चौहान, प्रतिहार, परमार तथा सोलंकी / चालुक्य राजवंश थे।
- परन्तु इन प्रमुख्य राजवंश के इलाबा और भी कई राजपूत वंश उभर कर आये थे,
- जैसे, गहड़वाल वंश, बुंदेलखंड के चंदेल वंश और चेदि राजवंश आदि…
- राजपूत वंश के अबधि में महिलाओं की स्थिति भी अच्छी थी महिलाओं को उच्च पद पर नियुक्त किया जाता था।
- लेकिन जौहर और सती प्रथा का भी प्रचलन था।
- राजपूत वंश का शासनकाल उत्तरी भारत में विस्तृत था।
- परन्तु आपसी मतभेद के कारण यह राजपूतों अपने ही अलग गुट बनाते थे और दूसरों से श्रेष्ठ होने का दावा करते थे।
- और, राजपूतों के मध्य में भाईचारे की भावना रखते हुए ग़ैर राजपूतों को शामिल नहीं करते थे।
- जिससे आपस में एकता का अभाव होता चला गया,
- और, राजपूतों के शासनकाल के समय ही महमूद ग़ज़नवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था।
- जिसके कारण विदेशी ताकत ने धीरे धीरे भारत पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया था।
- और, राजपूताने के राजवंशों को दिल्ली सल्तनत की सर्वोपरी सत्ता को स्वीकार करनी पड़ी थी।
- लेकिन, मेवाड़ के राजपूत शासक राणा साँगा ने दिल्ली सल्तनत को परास्त करने के लिए फ़रगना घाटी के ज़हीरुद्दीन बाबर को भारत बुलाया था।
- और, 1526 में पानीपत के मैदान पर पहला युद्ध में बाबर ने लोदी वंश के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराया था।
- लेकिन इससे राजपूतों को विशेष सफलता नही मिली थी।
- क्यों की 1527 में खानवा की युद्ध में ज़हीरुद्दीन बाबर ने राणा साँगा को परास्त कर भारत में मुग़ल साम्राज्य को स्थापित कर दी थी।
Conclusion in summary
- मुग़लों के पतन के प्रश्चात भी Rajput period में राजपूत शासकों का कोई लाभ नहीं हुआ था।
- क्यों की उस समय अंग्रेज की आगमन भारत पर हो चूका था।
- और, अठारहवीं सदी के आसपास जब मराठा और पिण्डारियों की प्रभाव पड़ने लगा था।
- तो, राजपूत शासकों ने सुरक्षा हेतु अंग्रेज़ों से सहायता लिया था।
- और, धीरे धीरे राजपूतों की एकता आभाव के कारण राजपूत वंश का प्रभाव धीरे धीरे कम होता गया।
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